Tuesday, October 19, 2010
हे राम तुम्हे अब आना होगा
फिर से शस्त्र उठाना होगा
आज तुम्हारा जन्म संदिग्ध है
नहीं अछूता जन्मस्थान ,सेतुबंध है
नर -पिशाच संग हुआ अनुबंध है
हिंद राज बना मदांध है ।
तेरे नाम से इनकी निरपेक्षता
इन्हें दिलाती सुख सुविधा सत्ता
नर -मुंडों को कौन है गिनता
नहीं इन्हें जनमानस चिंता ।
अवध ,साकेत ,जनकपुरी प्रभृति
रामराज ,मर्यादा ,वो देव संस्कृति
न्याय ,नीति और मैत्री संस्तुति
एक -एक कर ताज रहे ,वो सारी स्मृति ।
गाँधी ने बगिया में शूल उगाये
लाशो पर जवाहर सत्ता में आये
धर्म -निरपेक्षता ,आरक्षण के साये
लोकतंत्र को निगल रहे ,मुंह बाये ।
देश नहीं पंथ -मजहब आगे है
देशप्रेम के हुए ढीले धागे हैं
आतंक और देशद्रोह को मिलता प्रश्रय
बलिदानी बने दी न अभागे हैं ।
Sunday, February 14, 2010
आत्मा के बारे में अलग -अलग धर्मों में अलग -अलग विचार
है। जैन धर्म अनेक आत्माओं को मानता है। मेरी दृष्टि में यह विचार भ्रामक है। एक
ही शरीर में अनेक आत्माओं का होना तर्कसंगत नहीं है। उदाहरणार्थ किसी अंग के क्षतिग्रस्त होने से क्या उस अंग की आत्मा मर जाती है। उत्तर नकारात्मक होगा। क्योंकि व्यक्ति फिर भी जिन्दा रहता है। इसी तरह आत्मा अनेक चेतन पुदग्लों का समूह है ,यह बात भी सही नहीं है। आत्मा ऊर्जा-रूप है ,समूह की अंतिम निष्पत्ति विखंडन है। आत्मा एक है ,जिसे आग जला नहीं सकती ,पानी गला नहीं सकता ,हवा सुखा नहीं सकती ,यह न छिद सकती है ,न भिद सकती है ।
Sunday, March 29, 2009
Monday, December 29, 2008
अब तो नींद से जागो
अब तो नींद से जागो
खड़ा हिमालय सीना ताने
कहता हमसे ,अब तो नींद से जागो
देव भूमी के अमृत पुत्रों
भय से अब न भागो ।
याद करो अपने पुरखों को
स्वर्ग जिताने जो आए
उनके ही वंश में फिर
देखो भगवान स्वंयम आए ।
रही मनुज में पाशविकता
यह सनातन सत्य सही
पर मर्यादा लांघे जब
प्रकृति करती सहन नहीं ।
असुरों का तांडव हो
या फिर बल का अभिमान
कहाँ टिका काल के आगे
राक्षस रावन का गुमान ।
असुरों की लंका को फिर
अपना शौर्य दिखाना है
बच्चा बच्चा राम बने
घर घर अलख जगाना है ।
भय कैसा,सत्य के राही
फिर महाभारत रचादों
मांग रही शोणित धरा
तन मन भेंट चढ़ा दो ।
प्रताप शिवा और प्रथ्वीराज की
विरासत में अपना नाम लिखा दो
महाकाल बन टूट पदों
देवों की भाषा सिखला दो ।
रन में तुमसे ना कोई जीता
काल साक्षी ,गवाह रहा इतिहास
फिर क्लीवता कैसी
क्यों दोल रहा विश्वास ।
उठो ,जागो ,प्रलय का तूफान उठा दो
धरा ,गगन और दिक्दिगंत में
शौर्य परचम को फहरा दो
माँ का कर्ज चुका दो
अपना फर्ज निभा दो
अब तो नींद से जागो ।