Sunday, February 14, 2010

आत्मा के बारे में अलग -अलग धर्मों में अलग -अलग विचार

है। जैन धर्म अनेक आत्माओं को मानता है। मेरी दृष्टि में यह विचार भ्रामक है। एक

ही शरीर में अनेक आत्माओं का होना तर्कसंगत नहीं है। उदाहरणार्थ किसी अंग के क्षतिग्रस्त होने से क्या उस अंग की आत्मा मर जाती है। उत्तर नकारात्मक होगा। क्योंकि व्यक्ति फिर भी जिन्दा रहता है। इसी तरह आत्मा अनेक चेतन पुदग्लों का समूह है ,यह बात भी सही नहीं है। आत्मा ऊर्जा-रूप है ,समूह की अंतिम निष्पत्ति विखंडन है। आत्मा एक है ,जिसे आग जला नहीं सकती ,पानी गला नहीं सकता ,हवा सुखा नहीं सकती ,यह न छिद सकती है ,न भिद सकती है ।