Monday, December 29, 2008

अब तो नींद से जागो

अब तो नींद से जागो

खड़ा हिमालय सीना ताने

कहता हमसे ,अब तो नींद से जागो

देव भूमी के अमृत पुत्रों

भय से अब न भागो ।

याद करो अपने पुरखों को

स्वर्ग जिताने जो आए

उनके ही वंश में फिर

देखो भगवान स्वंयम आए ।

रही मनुज में पाशविकता

यह सनातन सत्य सही

पर मर्यादा लांघे जब

प्रकृति करती सहन नहीं ।

असुरों का तांडव हो

या फिर बल का अभिमान

कहाँ टिका काल के आगे

राक्षस रावन का गुमान ।

असुरों की लंका को फिर

अपना शौर्य दिखाना है

बच्चा बच्चा राम बने

घर घर अलख जगाना है ।

भय कैसा,सत्य के राही

फिर महाभारत रचादों

मांग रही शोणित धरा

तन मन भेंट चढ़ा दो ।

प्रताप शिवा और प्रथ्वीराज की

विरासत में अपना नाम लिखा दो

महाकाल बन टूट पदों

देवों की भाषा सिखला दो ।

रन में तुमसे ना कोई जीता

काल साक्षी ,गवाह रहा इतिहास

फिर क्लीवता कैसी

क्यों दोल रहा विश्वास ।

उठो ,जागो ,प्रलय का तूफान उठा दो

धरा ,गगन और दिक्दिगंत में

शौर्य परचम को फहरा दो

माँ का कर्ज चुका दो

अपना फर्ज निभा दो

अब तो नींद से जागो ।