हे राम तुम्हे अब आना होगा
फिर से शस्त्र उठाना होगा
आज तुम्हारा जन्म संदिग्ध है
नहीं अछूता जन्मस्थान ,सेतुबंध है
नर -पिशाच संग हुआ अनुबंध है
हिंद राज बना मदांध है ।
तेरे नाम से इनकी निरपेक्षता
इन्हें दिलाती सुख सुविधा सत्ता
नर -मुंडों को कौन है गिनता
नहीं इन्हें जनमानस चिंता ।
अवध ,साकेत ,जनकपुरी प्रभृति
रामराज ,मर्यादा ,वो देव संस्कृति
न्याय ,नीति और मैत्री संस्तुति
एक -एक कर ताज रहे ,वो सारी स्मृति ।
गाँधी ने बगिया में शूल उगाये
लाशो पर जवाहर सत्ता में आये
धर्म -निरपेक्षता ,आरक्षण के साये
लोकतंत्र को निगल रहे ,मुंह बाये ।
देश नहीं पंथ -मजहब आगे है
देशप्रेम के हुए ढीले धागे हैं
आतंक और देशद्रोह को मिलता प्रश्रय
बलिदानी बने दी न अभागे हैं ।
Tuesday, October 19, 2010
Sunday, February 14, 2010
आत्मा के बारे में अलग -अलग धर्मों में अलग -अलग विचार
है। जैन धर्म अनेक आत्माओं को मानता है। मेरी दृष्टि में यह विचार भ्रामक है। एक
ही शरीर में अनेक आत्माओं का होना तर्कसंगत नहीं है। उदाहरणार्थ किसी अंग के क्षतिग्रस्त होने से क्या उस अंग की आत्मा मर जाती है। उत्तर नकारात्मक होगा। क्योंकि व्यक्ति फिर भी जिन्दा रहता है। इसी तरह आत्मा अनेक चेतन पुदग्लों का समूह है ,यह बात भी सही नहीं है। आत्मा ऊर्जा-रूप है ,समूह की अंतिम निष्पत्ति विखंडन है। आत्मा एक है ,जिसे आग जला नहीं सकती ,पानी गला नहीं सकता ,हवा सुखा नहीं सकती ,यह न छिद सकती है ,न भिद सकती है ।
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