Thursday, November 13, 2008

राजस्थान यूँ तो सूरों की क्रिदास्थाली रहा है ,परन्तु संस्कृति और साहित्य में भी इसका कोई सानी नहीं । वीर -प्रसूता धरा पर रचना धर्मी व्यक्तियों ने अपनी लेखनी से मानव मन को आंदोलित और आनंदित भी प्रबलतम रूप से किया है । यहाँ की भाषा -वाणी में

2 comments:

KUNWAR PREETAM said...

bijay ji,
aapka blog suna kyun pada hai. blog duniya aapki lekhni ki pratiksha kar rahi hai.
prakash

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

बिजय दुगड॥
अचानक आपके चिट्ठे पर आना हुआ । अच्छा लगा। आप लिखते रहे मेरी हार्दिक मगल कामना है।
समय लिकाल कर मेरे ब्लोग पर जरुर आये।
http://ctup.blog.co.in
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